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रक्षाबंधन पेड़ के संग" अभियान: आदिवासी परंपराओं से प्रेरित प्रकृति संरक्षण की अनूठी पहल

रक्षाबंधन पेड़ के संग" अभियान: आदिवासी परंपराओं से प्रेरित प्रकृति संरक्षण की अनूठी पहल



विश्व आदिवासी दिवस, बिहार पृथ्वी दिवस और रक्षाबंधन के पावन अवसर पर जमुई जिले में प्रकृति संरक्षण की दिशा में एक प्रेरणादायक पहल "रक्षाबंधन पेड़ के संग" के रूप में देखने को मिली। जलवायु समर्थ पंचायत अभियान, रीजेनरेटिव बिहार और वन विभाग जमुई के संयुक्त तत्वावधान में यह आयोजन हरनी पंचायत के कलवातरी और मटिया पंचायत के बेला गाँव में संपन्न हुआ।

आदिवासी समुदाय, जो सदियों से जल, जंगल और जमीन को भगवान के रूप में पूजता आया है, आज भी बिना किसी आडंबर के अपने अस्तित्व और पर्यावरण की रक्षा के लिए निरंतर प्रयासरत है। उनकी परंपराएँ पेड़-पौधों को जीवन का अंग मानती हैं — चाहे वह विवाह हो, पर्व हो या श्राद्ध— प्रकृति सदा उनकी परंपराओं की साक्षी रही है।


इस आयोजन में वन विभाग के फॉरेस्टर, वनरक्षक, पंचायत प्रतिनिधि और बड़ी संख्या में ग्रामीणों ने भाग लिया। सभी उपस्थित ग्रामीणों ने पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधकर उनकी रक्षा का संकल्प लिया और यह शपथ ली कि वे जल, जंगल और जमीन के संरक्षण में हर संभव योगदान देंगे तथा अधिक से अधिक पेड़ लगाएंगे। यह अभियान न केवल जमुई के 10 आदिवासी गांवों में, बल्कि आसपास के जिलों में भी प्रेरणा बनकर फैल रहा है। "रक्षाबंधन पेड़ के संग" अभियान के माध्यम से यह संदेश दिया गया कि आज के समय में जब जलवायु परिवर्तन अपने चरम पर है, ऐसे में हमें प्रकृति से सीख लेनी चाहिए और उसे संजो कर रखना चाहिए।

आदिवासी समुदायों की जीवनशैली में प्रकृति के प्रति सम्मान और संरक्षण की भावना गहराई से जुड़ी हुई है। उनके गीतों में जंगल की खुशबू और संस्कारों में धरती से जुड़ी आत्मा की गूंज सुनाई देती है। यह हम सभी का दायित्व है कि हम उनके अस्तित्व, अधिकार और आत्मसम्मान की रक्षा करें, उनकी संस्कृति का सम्मान करें और अपने स्तर पर प्रकृति के संरक्षण हेतु सार्थक प्रयास करें।

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