
पैसे की खनक से दब गया मनरेगा विभाग की कई फाइलें!
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जमुई जिले में मनरेगा योजना का नाम अब आम जनता की ज़ुबान पर भ्रष्टाचार से जुड़ गया है। बरसों से इस योजना के तहत करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत बेहद चौंकाने वाली है। बरहट प्रखंड में एक सड़क का निर्माण मनरेगा के तहत कराया गया, जो नसेता गांव के पास है। ग्रामीणों की आवाजाही को ध्यान में रखकर यह सड़क प्रस्तावित की गई थी, लेकिन निर्माण कार्य आधे में ही छोड़ दिया गया।
वहीं दूसरी ओर, ऐसी जगहों पर पूरी सड़क बना दी गई है जहां न कोई आवास है, न नागरिक, और न ही आवागमन की जरूरत। सड़क किनारे लगे योजना बोर्ड पर लिखा है कि यह कार्य 12 फरवरी 2025 से शुरू किया गया और इसकी लागत ₹6,88,093 है। लेकिन न योजना संख्या स्पष्ट है, न ही समाप्ति तिथि। केवल "2024-25" अंकित कर खानापूर्ति कर दी गई है। मनरेगा के इस काम को “पंचायत समिति” के नाम से दर्शाया गया है, लेकिन योजना का कोई तकनीकी या विस्तृत ब्यौरा बोर्ड पर नहीं दिया गया है।
इतना ही नहीं, हाल ही में बनी इन सड़कों में दरारें तक आ चुकी हैं – जो गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े करती है। स्थानीय सूत्रों की मानें तो J E और PRS की मिलीभगत से सड़क का निर्माण निजी जमीनों के बीच कराया गया है, जिससे उन जमीनों की कीमत बढ़े और भविष्य में उसे जमीन का अधिक मूल्य मिल सके। विकास कार्यों के नाम पर निजी हितों को साधने का यह एक बेहद चिंताजनक उदाहरण है।वही खैरा प्रखंड अंतर्गत गरही पंचायत में कुछ महीने पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आगमन के बाद मनरेगा के अंतर्गत निर्मित कई पोखर "गायब" हो गए थे। उस मामले की जांच अब तक अधूरी है, और नए मामले ने विभाग की कार्यप्रणाली पर और भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
अब सवाल यह है:
क्या ऐसी योजनाओं पर विभागीय निरीक्षण होता है?
जब बोर्डों पर अधूरी जानकारी हो, तो काम को स्वीकृति कैसे मिलती है?
क्या ऐसे कार्यों की जांच की जाएगी, या सबकुछ पैसे की खनक में दब जाएगा?
मनरेगा के तहत जारी इन घोटालों की श्रृंखला अब चिंताजनक रूप ले चुकी है। ज़रूरत इस बात की है कि ऐसे मामलों की निष्पक्ष और समयबद्ध जांच हो, ताकि गरीबों के नाम पर हो रहा यह ‘विकास’ बंद हो और जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई हो सके।
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